कविता - 0..... -जुगेश कुमार गुप्ता

मै उस किताब को पढ़ना नहीं चाहता,


जिसमे हुक्मरानों की तामीली लिखी गई है,


वे सभी गौरव गाथाएँ बेकार हैं,


जिनकी बुनियाद ग़रीब मज़लूम सैनिकों की,


लाशों पर रखी गई है,


वे तमाम संस्कृतियाँ जिसमें दबाया गया है,


मेहनतकश आवाम को,


और जिनकी दुहाई देता है,


खुद को जातिगत ऊँचा दिखाने वाला वर्ग,


वे धार्मिक किताबें जो बिखेरती हैं उन्माद और


सुकून से पल रहे फिज़ाओं में जहरीली बयार,


वे तमाम अफ़साने, जिनको उबारा गया है,


कोरे कागज़ के दस्तावेजों में,


जिनकी स्याहियों में खून की गंध शामिल है,


उनका ख़तम हो जाना ही इस सभ्यता के लिए,


सूरज की नई किरण के साथ, 


सवेरे का बसेरा जैसे होगा।


                                  जुगेश कुमार गुप्ता, शोध छात्र, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, 9369242041


   


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